साधु माता को वरदान प्राप्ति।। रानी जयमती का जन्म & विवाह

साधु माता

साधु माता को वरदान प्राप्ति & जयमती का जन्म & विवाह :- 

साडू माता को वरदान प्राप्ति :- जैसा कि दोस्त आपको भी पता है कि स्वयं सवाई भोज बगड़ावत भी शिव जी के परम भक्त थे। उधर उनकी पत्नी साडू  ने ईश्वर की महान सती साध्वी होने के साथ ही साधु-संतों की भी अन्यय सेवा पूजा में लगी रहती थी । एक दिन भगवान त्रिलोक पति स्वयं उसके आतिथ्य की परीक्षा लेने हेतु उसके दरवाजे पर साधु के वेश में उपस्थित हुए और अलख अलख की आवाज लगाएं। वह उस समय स्नान कर रही थी उसने दोशियों को भिक्षा लेकर भेजा तो भगवान ने भिक्षा लेने से इनकार करते हुए कहा कि यदि मालकिन स्वयं आकर ही भिक्षा दे तो लूंगा अन्यथा खाली हाथ ही लौट जाऊंगा।

यह सब जानकर साडू ने अनुमान लगा लिया था कि यह कोई साधारण साधु ना होकर त्रिदेवो में से कोई एक है जो मुझे छलने आया है । अतः वह जैसे ना रही थी निर्वस्त्र ई भिक्षा लेकर निकल आए भगवान ने उसे निर्वस्त्र देख कर मुंह फेर लिया तो साडू बोली पर वो जब आपने मुझे संसार में भेजा था तब कौन सा वस्त्र पहना कर भेजा था ? यह खाते-खाते उसके शरीर पर के बाल इतने बढ़ गए कि सारा शरीर ढक गया।

माता साधु ने क्या वरदान मांगा :-भगवान भोले बेटी तुम मान भाग्यशाली ही नहीं मान सकती है तू ! तू जो भी वर मांगना चाहती हैं मांग ले मैं तेरे पर प्रसन्न हूं । साडू बोली महाराज , आपकी कृपा से मेरे और तो किसी भी बात की कमी नहीं है, केवल एक संतान नहीं है और आपने आज मुझे माता का कर पुकारा है।


फिर आप ही मेरे यहां आकर जन्म ग्रहण करें यह मेरी प्रार्थना है। भगवान ने कहा अच्छा माता बगड़ावतों को मिले 12 वर्ष के काया और माया के अटूट बने रहने के बर्तनों की अवधि समाप्त होकर उसके पतन के बाद में तुम्हारी कॉप्स से सिर्फ 12 वर्ष हेतु जन्म धारण करके वंश का पुनरूद्धार करूंगा और 12 वर्ष पूरे हुए थे वापस स्वर्ग में लौट जाऊंगा। इसके बाद भगवान देखते ही देखते अदृश्य हो गए।


रानी जयमती का जन्म :- कहते हैं कि जब बाग जी किसी के भी चलने में ना आए तो दा शक्ति मां माया ने इस कार्य को करने का बीड़ा उठाया और उसने बुआलगढ़ के राजा ईडदे सोलंकी के घर जाकर जन्म लिया। जैसा की जयंती शक्ति का उतारती घड़ी बढ़ते पलभर तेज गति से बढ़ने लगी और शीघ्र विवाह योग्य हो गई तो राजा ईडदे को उसके संबंध की चिंता हुई। उसने जगह-जगह दूध भेजें जो भी दूध जाता जयंती जो सवाई भोज पर आसन की तिथि और उसके सिवाय अन्य किसी से शादी करना नहीं चाहती थी उसे खुद समझाती 


जयंती ने टीका देने की क्या शर्त रखी :- रानी जयमती ने यह कहा कि मेरा टीका वहां देना जहां 24 बाई हो जिनके यहां मंगला हाथी तथा बोली घोडी हो। राजदूत विपरीत देवता सारे भारत में घुमाई पर यह सागर कहीं ना मिला। सिरप गोटा में भाग पुत्रों के यहां पर यह सब देखकर जयंती की शादी का टीका बगड़ावतों के यहां दे गए और तेजा भोजा सोचने लगे कि राजा की बाइक आईटी का राणा को जला देना चाहिए।


वह भी तो अपना पगड़ी बदल भाई है साथ ही राजाओं को कोई संतान भी नहीं है अतः टीकाकरण में जाकर राणा को जिला देना चाहिए।


टीका राण झिला देने के बाद  :- टीका झिला आते ही विवाद प्रयोग कर उसकी तैयारियां शुरू हुई निश्चित बुंआलगंढ पहुंची। बरात में राणा की सभी सगे संबंधी कौन से देव के अलावा 24 भाग पुत्र और उनका लवाजमा भी था। जय भारत सर में घुसी में सवारियों में सबसे आगे थे वह बोली घोड़ी पर तथा अन्य भाई अपने अपने घोड़ा घोड़े पर सवार रुपये मोहरों की उछाल करते निकले। सवाईभोज तो बिना सवारी ही बिंद लगता था फिर आज तो विशेष रूप में सज कर आया था लोगों ने उसे विद समझा और उसके पीछे-पीछे बिंद की सवारी और राणा जी को बिन बने बैठे देखा तो सारा मजा बिगड़ गया।

लोगों ने पूछा कि आवाज में में सबसे आगे आगे चल रहे बहादुर सरदार कौन थे ? नीमदे ने कहा कि - यह भी हमारे लोग थे।


बरात पहुंचने के बाद :- जूही बरात उस बाग में जान जनवासा दिया जाना था पहुंची उधर जयंती को वर्ग की जगह बुड्ढे राणा को देखकर जाने की आवाज सुनकर बहुत बड़ी चिंता हुई । वह अपनी दासी हीरो के साथ पेट दुखने का बहाना करके भैरू धोने के बहाने उसी बाकी में बने भेरू जी के मंदिर में गए ।


सवाई भोज महाराज और रानी जयमती के बीच में वार्तालाप :- वहां बोझ को चुपके से बुलाकर कहा कि मैं तो टिका आपके लिए भिजवाया था तो राणा के साथ हर्गिज भी फेरे नहीं खाऊंगी और ना राणा के साथ राण ही जाऊंगी तो तो सवाईभोज ने समझाया कि - देवी अभी तो चुप रह अनाज सब बात बिगड़ जाएगी और दोनों वंश इसी तरह लड़की लड़कर खत्म हो जाएंगे। ले मैं तुझे अपना एक अंडा देता हूं तू इसके साथ फेरे खा लेना फिर बरात लौटने के समय हम तुम्हें घोटाले चलेंगे।


तोरण मारने का समय :- इधर समेल का दस्तूर होकर बरा तोरण पर पहुंची तो जयंती ने अपनी दासी हीरो को तोरण की डोरी के पास खड़ी कर दी थी। तोरण कुछ ऊंचाई पर ही था तभी जब जब राणा जी उसे मारने को हाथ बढ़ाते तो हीरा उससे ऊपर खींच लेती। और इसी बीच में सवाई भोज ने आगे बढ़कर तोरण मार दिया जैसा कि उस समय रोशनी इतनी मंदिर कर दी गई थी कि इस चार सौ बीसी का किसी को पता ना  चले ।


नीमदे को कुछ भनक लग गई और वह आग बबूला हो करने वक्त से उलझ गया पर लोगों के बीच में पढ़कर उस समय तो उसे शांत करा दिया पर उसके मन में राग देश की आग अभी शांत नहीं हुई । यह घटना तो अंधेरे में गठित इयत्ता नीमदे जैसे २-४ व्यक्तियों के सिवा किसी भी बराती को कुछ भी अता पता नहीं था  ।


विदाई के समय :- पैरों के बाद बरात विदा हुई ईडदे अपनी शक्ति उपरांत डाग डायजा हाथी घोड़े और दासियां देकर बरात विदा कर दी । 


आपके लिए :-  प्रिय भक्त जनों हमने इस आर्टिकल में शानदार तरीके से साडू माता को वरदान प्राप्त की और रानी जयमती का जन्म और विवाह दोनों अच्छे तरीके से बताया है। फिर भी अगर आपको इसमें किसी भी प्रकार की कोई गलत चीज लगती है या यह नहीं होनी चाहिए थी उसके लिए हम आपसे क्षमा चाहते हैं और उसको कमेंट बॉक्स में बताएं ताकि हम उसको जल्दी ठीक कर।

और आपको इसमें कुछ भी अच्छा लगा हो तो आपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें ताकि वह भी अपने इतिहास को जान सके बहुत-बहुत धन्यवाद राम राम सा जय श्री देव 


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